बुधवार, 3 अगस्त 2011
लंच के बाद महंगाई पर बहस में शामिल नहीं हुए सांसद
हमारे देश के नेता महंगाई को लेकर कितने चिंतित हैं इसका नजारा मानसून सत्र के तीसरे दिन महंगाई पर बहसे के दौरान देखने को मिला। आजादी के बाद यह पहला मौका था जब सरकार और विपक्ष महंगाई पर बहस कर रहे हों। यह बहस लंच तक तो ठीक-ठाक चली। लंच के बाद शायद हमारे सांसदों को लोकसभा जाना भी गवारा नहीं गुजरा। इस दौरान लोकसभा की ज्यादातर सीटें खाली नजर आईं।
मानसून सत्र के पहले दो दिन लोकसभा और राज्यसभा दोनों की कार्रवाई भारी हंगामें के बाद स्थगित करनी पड़ी थी। विपक्ष इस मुद्दे पर बहस और वोटिंग कराना चाहता था। इसके लिए कानून 184 के तहत लोकसभा में महंगाई पर बहस और वोटिंग होनी थी। लंच तक पक्ष-विपक्ष्ा के बीच थोड़ी बहुत बहस देखने को मिली। लंच के बाद सदन में सन्नाटा छाया हुआ था। ऐसे में जब लोकसभा में सांसद ही मौजूद नहीं हैं तो वोटिंग का क्या मतलब है।
चुनावों के द्वारा इन नेताओं को जिस काम के लिए चुना जाता है वे कभी भी अहम मामलों पर अपना पक्ष रखने में ध्यान नहीं देते हैं। अब ऐसे में यह सवाल उठता है कि संसद के इतने अहम सत्र जिसमें कि लोकपाल और महंगाई जैसे मुद्दों पर चर्चा होनी है उसमें हमारे देश के माननीय सांसद उपस्थित क्यों नहीं रहते हैं। क्या दूसरी चीजें इनके लिए संसद की कार्रवाई में मौजूद रहने से भी ज्यादा जरूरी हैं।
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